महर्षि वेद व्यास, भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्वपूर्ण स्तंभ

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महर्षि वेद व्यास जी , महाभारत महान ग्रंथ के जनक , भारतीय दर्शन, कूटनीति, युद्धनीति के ज्ञाता , पुराणों के रचियाता और नैतिकता का महान स्रोत है|

महर्षि वेद व्यास

महर्षि  वेद व्यास ,ऋषि पाराशर तथा सत्यवती की संतान थे |

महर्षि वेद व्यास के जन्म के कुछ समय पश्चात सत्यवती ने हस्तिनापुर के राजा शान्तनु से विवाह कर लिया।

सत्यवती के दो पुत्र थे :  चित्रांगद  और विचित्रवीर्य

दासी स्वस्थ बच्चे के साथ गर्भवती हो जाती है इसका नाम विदुर था ।

महर्षि वेद व्यास जी का जाबाली ऋषि की पिंजला नामक पुत्री से एक पुत्र था  जिसका नाम शुक था ।

धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के वे  जैवीय या आध्यात्मिक पिता थे

 पितामह भीष्म के सौतेले भाई थे।

महर्षि वेदव्यास जी का भारतीय दर्शन

जिनकी शिक्षा और ग्रंथों ने विज्ञान और आध्यात्म के बीच एक अद्वितीय सेतु का निर्माण किया है। उनके द्वारा रचित महाभारत, पुराण और वेदों की व्याख्या ने न केवल भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया,

विज्ञान और दर्शन के गहरे आयामों को भी उजागर वेद व्यास ने वासुदेव और सनकादिक जैसे महान संतों से ज्ञान प्राप्त किया और उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य नारायण या परमात्मा को प्राप्त करना था।

वेदों के अतुलनीय ज्ञान और इनके विस्तार के कारण इन वेदव्यास का नाम की उपाधि दी गई ।हिंदू धर्म में व्यास को माना जाता है भगवान विष्णु का रूप।

 महर्षि वेदव्यास में एक अलौकिक शक्ति थी

महर्षि वेदव्यास का आध्यात्मिक  योगदान

महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों को को चार भागों—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद—में विभाजित किया, जिससे इनकी रक्षा और प्रचार-प्रसार संभव हो सका। 

उन्होंने महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जो भारतीय दर्शन, कूटनीति, युद्धनीति और नैतिकता का महान स्रोत है। इसी ग्रंथ में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश, जो ‘भगवद् गीता’ के रूप में प्रसिद्ध हुए, जीवन और आत्मा के मूल प्रश्नों को सुलझाने वाले हैं।

इसके अलावा, उन्होंने अठारह पुराणों की रचना की, जो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों को समेटते हैं, बल्कि समाज व्यवस्था, औषधि, खगोल विज्ञान और गणित के भी उत्कृष्ट स्रोत हैं। 

विज्ञान और महर्षि वेदव्यास

हालांकि वेदव्यास को मुख्य रूप से एक ऋषि और दार्शनिक के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनका योगदान वैज्ञानिक चिंतन को भी प्रेरित करता है।

भारतीय ज्ञान परंपरा में वेदों को विज्ञान की आधारशिला माना जाता है, जिसमें ब्रह्माण्ड विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, ज्योतिष, तथा खगोल विज्ञान से संबंधित गहन ज्ञान समाहित है। 

 ब्रह्माण्ड विज्ञान एवं महर्षि वेदव्यास   

वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, संरचना और तत्वों का विवरण मिलता है। उपनिषदों और पुराणों में विश्व की संरचना और ब्रह्माण्ड के विस्तार का उल्लेख है, जिसे आधुनिक विज्ञान आज खगोल विद्या (अस्ट्रोनॉमी) और ब्रह्माण्ड विज्ञान (कॉस्मोलॉजी) के रूप में मान्यता देता है। 

गणित एवं ज्योतिष 

गणित की जड़ों को भारतीय ऋषियों के कार्यों में देखा जा सकता है। वेदव्यास द्वारा रचित ग्रंथों में संख्याओं, ज्यामिति, समय गणना और खगोलीय गणनाओं का उल्लेख है।

वैदिक गणित के अनेक सूत्र ऐसे हैं जो आधुनिक गणितीय सिद्धांतों से मेल खाते हैं तथा क्लिष्ट गणितीय  अवधारणा  को सरल  बनाते है । 

आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान

आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा प्रणाली की मूल विधा है, जिसका उल्लेख महर्षि चरक और सुश्रुत के ग्रंथों में मिलता है। वेदों में भी औषधियों का विवरण मिलता है, जिसमें वनस्पति विज्ञान, मानव शरीर संरचना और रोगों के उपचार की विधियां समाहित हैं। 

महर्षि वेदव्यास जी के विचार और आधुनिक विज्ञान

महर्षि वेदव्यास की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उनका विचार था कि ज्ञान का उद्देश्य केवल सैद्धांतिक अध्ययन तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज के कल्याण के लिए भी होना चाहिए।

वेदव्यास ने धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा के माध्यम से वैज्ञानिक सोच को भी बढ़ावा दिया। 

भारतीय संस्कृति में विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे से अलग नहीं हैं, बल्कि वे एक ही ज्ञान प्रणाली के दो पक्ष हैं।

वेदव्यास ने अपने ग्रंथों के माध्यम से न केवल धार्मिक ज्ञान का प्रचार किया, बल्कि उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक विषयों को भी स्पष्ट किया। 

उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि ज्ञान केवल सूचनाओं का संकलन नहीं है, बल्कि यह सोचने, समझने और नवाचार करने की क्षमता विकसित करने का साधन है।

आज के वैज्ञानिक युग में भी, वेदव्यास की शिक्षाओं को नए दृष्टिकोण से समझने और उनके विचारों को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।

 महर्षि वेदव्यास जी का आध्यात्मिक दृष्टिकोण

 उनकी विद्वत्ता, लेखनी और आध्यात्मिक दृष्टिकोण ने भारतीय संस्कृति और दर्शन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। उनके योगदान का विस्तार अनेक क्षेत्रों तक फैला है—वेदों का संपादन, महाभारत की रचना, पुराणों का संकलन, भारतीय समाज को संगठित करने वाली धार्मिक एवं दार्शनिक शिक्षाओं का प्रवर्तन, और यहां तक कि विज्ञान तथा गणित में उनके दृष्टिकोण का योगदान है ।

आइए उनके योगदान को और विस्तार से समझते हैं। विज्ञान से संबंधित वेदव्यास के सिद्धांत

१. ब्रह्मांड की संरचना और खगोल विज्ञान

महाभारत और पुराणों में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसकी संरचना का उल्लेख मिलता है। वेदव्यास ने ब्रह्मांड को विभिन्न लोकों में विभाजित किया, जो आधुनिक खगोल विज्ञान में ग्रहों और आकाशीय पिंडों की अवधारणा से मेल खाता है।

२. गणित और ज्योतिष

वेदव्यास द्वारा रचित ग्रंथों में संख्याओं, ज्यामिति और समय गणना का उल्लेख मिलता है। वैदिक गणित के कई सूत्र आधुनिक गणितीय सिद्धांतों से मेल खाते हैं।

३. आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान

अथर्ववेद और अन्य ग्रंथों में औषधियों, वनस्पतियों और चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख मिलता है। महर्षि वेदव्यास ने इन विषयों को संरक्षित किया, जिससे आयुर्वेद का विकास हुआ।

४. चेतना और मनोविज्ञान

वेदव्यास ने आत्मा, मन और चेतना के सिद्धांतों पर गहन विचार किया। उनके ग्रंथों में ध्यान और योग की विधियों का उल्लेख मिलता है, जो आधुनिक मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस से जुड़े हैं। 

महर्षि वेद व्यास जी द्वारा वेदों का संपादन 

महर्षि वेदव्यास को वेदों का विभाजन करने वाला विद्वान माना जाता है। प्राचीन समय में वेद एक ही संकलन के रूप में विद्यमान थे, लेकिन उन्हें चार प्रमुख भागों में व्यवस्थित करना आवश्यक था।

इस कार्य को महर्षि वेदव्यास ने पूरा किया, जिससे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद अस्तित्व में आए। उनके इस कार्य से वैदिक ज्ञान का संरक्षण और प्रचार-प्रसार संभव हुआ। 

महर्षि वेद व्यास जी द्वारा महाभारत की रचना

महाभारत को विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है। इसमें १,००,००० से अधिक श्लोक हैं और यह विभिन्न विषयों का गहन वर्णन करता है—कूटनीति, राजनीति, धर्म, समाज व्यवस्था, युद्धनीति, नैतिकता, और अध्यात्म। महाभारत में ही भगवद गीता का समावेश हुआ है, जो भारतीय दर्शन की महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक है। 

पुराणों का संकलन 

महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों का संकलन किया, जो भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित करने में सहायक रहे। ये पुराण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि इनमें समाज, विज्ञान, गणित, औषधि, खगोल शास्त्र, जीवनशैली और नैतिकता से जुड़े विषयों का गहन विवेचन किया गया है। 

महर्षि वेद व्यास जी द्वारा ब्रह्म सूत्रों की रचना

ब्रह्म सूत्र, जिसे वेदांत सूत्र भी कहा जाता है, महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित एक महान ग्रंथ है। इसमें अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। ये सूत्र भारतीय दर्शन की गहराइयों को उजागर करने वाले हैं और आध्यात्मिक चिंतन को दिशा प्रदान करते हैं। 

समाज एवं नैतिकता पर प्रभाव

महर्षि वेदव्यास का योगदान केवल ग्रंथों की रचना तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज को नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

महाभारत के विभिन्न प्रसंगों में उन्होंने यह संदेश दिया कि धर्म और नैतिकता के बिना समाज टिक नहीं सकता। उनकी शिक्षाएं आज भी मनुष्य को जीवन के आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा देती हैं। 

विज्ञान और गणित से संबद्ध विचार

महर्षि वेदव्यास के ग्रंथों में गणित और विज्ञान के अनेक सिद्धांत देखने को मिलते हैं। वैदिक गणित की जड़ों को उनके विचारों में पाया जा सकता है। उन्होंने समय गणना, खगोल शास्त्र, ज्योतिष और गणितीय अवधारणा का उल्लेख किया है। 

महर्षि वेद व्यास प्रसूति शास्त्र  के जनक  (Father of Gynecology )

वेद व्यास जी को स्त्री आरोग्य विज्ञान तथा प्रसूति विज्ञान का अगाध ज्ञान प्राप्त  था | स्त्री रोग से जुड़े की तथ्य  एवं आयुर्विज्ञान की जानकारी थी अतः उन्हे स प्रसूति शास्त्र के जनक माना  गया

आध्यात्म और योग

महर्षि वेदव्यास ने योग और ध्यान को भी महत्वपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया। भगवद गीता में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग की विस्तृत व्याख्या उनके ही माध्यम से हुई।

उन्होंने यह स्पष्ट किया कि योग केवल शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शुद्धता का मार्ग है। 

महर्षि वेदव्यास जी , भारतीय संस्कृति के स्तंभ

 उनके ग्रंथ और शिक्षाएं न केवल आध्यात्मिकता और नैतिकता को मजबूत करती हैं, बल्कि वे समाज, विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्रों में भी गहन प्रभाव छोड़ती हैं।

उनका योगदान कालातीत है—आज भी उनके विचार और ज्ञान मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन देने वाले हैं |

महर्षि वेदव्यास ने कई प्रमुख ग्रंथों की रचना की, जिनका भारतीय ज्ञान परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान है। उनके लेखन ने धर्म, दर्शन, इतिहास, विज्ञान और समाज को गहराई से प्रभावित किया। आइए उनके प्रमुख ग्रंथों पर दृष्टि डालते हैं: 

महाभारत

महाभारत भारतीय साहित्य का सबसे बड़ा महाकाव्य है, जिसमें लगभग १,००,००० श्लोक हैं।

यह ग्रंथ युद्ध, राजनीति, नैतिकता, धर्म और दर्शन का अद्भुत संकलन है। महाभारत में ही  शामिल है, जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए गहन आध्यात्मिक और दार्शनिक उपदेश हैं।

वेदव्यास के मुख से निकली वाणी और वैदिक ज्ञान को लिपिबद्ध करने का काम गणेश जी ने किया था।

महर्षि वेदव्यास को अठारह पुराणों का संकलक माना जाता है

 ये पुराण भारतीय धर्म, समाज और संस्कृति का गहन अध्ययन प्रस्तुत करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख पुराण हैं: 

1. ब्रह्म पुराण

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं।

2. पद्म पुराण।

पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं।

इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है।

3. विष्णु पुराण

विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं।

4. शिव पुराण

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है।

5. श्रीमद्भागवत पुराण

भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है।

6. नारद पुराण

नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं।

7. अग्नि पुराण

अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है।

8.मत्स्य पुराण

 इस पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्लोक हैं

9.ब्रह्मवैवर्त पुराण

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुलसी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं।

इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

10.वराह पुराण

वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

11.स्कन्द पुराण

स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है

12.मार्कण्डेय पुराण

अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं।

13.वामन पुराण

वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो

14.कूर्म पुराण

कुर्मा पुराण में 18000 श्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है।

15.गरुड़ पुराण

गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।

16.ब्रह्मण्ड पुराण

ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्लोक तथा पूर्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है।

17. लिंग पुराण

लिंग पुराण में 11000 श्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है।

इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

18. भविष्य पुराण

भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है।

महर्षि वेदव्यास के मुख से निकली वाणी और वैदिक ज्ञान को लिपिबद्ध करने का काम गणेश जी ने किया

वेद व्यास ने वासुदेव और सनकादिक जैसे महान संतों से ज्ञान प्राप्त किया और उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य नारायण या परमात्मा को प्राप्त करना था।

ऐसा कहा जाता है कि वेद व्यास ने स्वयं भगवान गणेश से महाभारत के संकलन में उनकी मदद करने के लिए कहा था। लेकिन गणेश ने उन पर एक शर्त रखी थी, उन्होंने कहा कि वह उनके लिए महाभारत लिखेंगे यदि केवल वह उन्हें बिना रुके सुनाएंगे।

इस तरह लिखी गई थी महाभारत, वेद व्यास ने सभी उपनिषदों और 18 पुराणों को लगातार भगवान गणेश को सुनाया|

वेदव्यास उन मुनियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने साहित्य और लेखन के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को यथार्थ का ज्ञान दिया है

महर्षि व्यास ने न केवल अपने आसपास हो रही घटनाओं को लिपिबद्ध किया, बल्कि वह उन घटनाओं पर बराबर परामर्श भी देते थे। महर्षि वेदव्यास ने समस्त विवरणों के साथ महाभारत ग्रन्थ की रचना कुछ इस तरह की थी कि यह एक महान इतिहास बन गया।

महर्षि वेद व्यास जी का  जन्म त्रेता युग के अन्त में हुआ था। वह पूरे द्वापर युग तक जीवित रहे। कहा जाता है कि महर्षि व्यास ने कलियुग के शुरू होने पर यहां से प्रयाण किया।

महर्षि व्यास को भगवान विष्णु का 18वां अवतार माना जाता है। भगवान राम विष्णु के 17वें अवतार थे।

बलराम और कृष्ण 19वें और 20वें।इसके बारे में श्रीमद् भागवतम् में विस्तार से लिखा गया है, जिसकी रचना मुनि व्यास ने द्वापर युग के अन्त में किया था।

श्रीमद् भागवतम् की रचना महाभारत की रचना के बाद की गई थी।

महर्षि व्यास ने जिस गुफा में बैठक महाभारत की रचना की थी, वह नेपाल में अब भी मौजूद है।

महर्षि व्यास ने वेदों का अलग-अलग खंड में विभाजन किया था |वेदव्यास के बारे में कहा जाता है कि वह सात चिरंजिवियों में से एक हैं।

महर्षि व्यास के बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग के दौरान उन्होंने पुराण, उपनिषद, महाभारत सहित वैदिक ज्ञान के तमाम ग्रन्थों की रचना की थी।

महर्षि वेदव्यास के जीवन प्रेरक विचार

महर्षि वेद व्यास के उपदेश और उनके विचार हमारे जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

1अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निर्भय होकर रहना ये सभी मनुष्य के सुख हैं |

2.  जो सज्जनता का अतिक्रमण करता है उसकी आयु, संपत्ति, यश, धर्म, पुण्य, आशीष, श्रेय नष्ट हो जाते हैं।

 3.  किसी के प्रति मन में क्रोध रखने की अपेक्षा उसे तत्काल प्रकट कर देना अधिक अच्छा है, जैसे पल में जल जाना देर तक सुलगने से अच्छा है।

4.  अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त  करता है।

5.  दूसरों के लिए भी वही चाहो जो तुम अपने लिए चाहते हो किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अत: सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए

6.  जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किंतु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है।

7.  जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है।

 8.  जहां कृष्ण हैं, वहां धर्म है और जहां धर्म है, वहां जय है।

9.  जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है।

10.  अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखने वाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं।

11.  जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता।

12.  क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है।

13.  मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है।

14.  दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना।

15.  जो केवल दया से प्रेरित होकर सेवा करते हैं, उन्हें नि:संशय सुख की प्राप्ति होती है।

16.  अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धिबल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते। शूरवीरता, विद्या, बल, दक्षता, और धैर्य, ये पांच मनुष्य के स्वाभाविक मित्र हैं।

17.  जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है।

18.  जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं।

19.  जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली।

20.  संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है, जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं।

21.  माता के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी मां को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। -वेदव्यास

22.  मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है।

23.  आशा ही दुख की जननी है और निराशा ही परम सुख शांति देने वाली है।

24.  सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही सनातन ब्रह्मा है, सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है ” – वेदव्यास”

25.  जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में समभाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है।

26.  जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है, वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।

27.  स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं, उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं ” वेदव्यास”

28.  मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले। उसके उपकार से बढ़कर उसका उपकार कर दे।

29.  विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है।

30.  जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर देह भी नष्ट हो जाता है।

 महर्षि वेदव्यास जी वेदों के ज्ञाता, महाभारत के रचयिता,और 18 पुराणों के संग्रह कारक

व्यास पूर्णिमा

प्राचीन काल में, भारत में हमारे पूर्वज, व्यास पूर्णिमा के बाद चार महीनों या ‘चतुर्मास’ के दौरान ध्यान करने के लिए जंगल में जाते थे इस शुभ दिन पर व्यास ने अपना ब्रह्म सूत्र लिखना शुरू किया।

इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, हिंदुओं को व्यास और ब्रह्मविद्या गुरुओं की पूजा करनी चाहिए और ‘ज्ञान’ पर ब्रह्म सूत्र और अन्य प्राचीन पुस्तकों का अध्ययन शुरू करना चाहिए।

ब्रह्म सूत्र:

ब्रह्म सूत्र, जिसे वेदांत सूत्र के रूप में भी जाना जाता है, व्यास ने बदरायण के साथ लिखा था।

उन्हें चार अध्यायों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक अध्याय को फिर से चार खंडों में विभाजित किया गया है।

यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि वे सूत्र के साथ शुरू और समाप्त होते हैं जिसका अर्थ है “ब्राह्मण की वास्तविक प्रकृति की जांच में कोई वापसी नहीं है”,जो “जिस तरह से अमरता तक पहुंचता है और दुनिया में वापस नहीं आता है” की ओर इशारा करता है।

ब्रह्म सूत्र (वेदांत सूत्र) 

ब्रह्म सूत्र वेदांत दर्शन के मूल ग्रंथों में से एक है।

इसमें वेदांत के सिद्धांतों का तार्किक विवेचन किया गया है और भारतीय दार्शनिक चिंतन को सुव्यवस्थित रूप दिया गया है।

अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत जैसे अनेक वेदांतिक मतों की जड़ें इसी ग्रंथ में मिलती हैं। 

वेदों का विभाजन 

महर्षि वेदव्यास ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया: 

ऋग्वेद– भजन, स्तोत्र और यज्ञों से संबंधित। 

यजुर्वेद – यज्ञों की प्रक्रिया और अनुष्ठानों की विधियां। 

सामवेद – संगीत और स्वर विज्ञान पर केंद्रित। 

अथर्ववेद – चिकित्सा, ज्योतिष और रहस्यमय विद्याओं का समावेश। 

महामात्र्य ग्रंथ

महर्षि वेदव्यास ने व्यास संहिता व्यास गीता और अन्य दार्शनिक ग्रंथों की रचना भी की। उनकी लेखनी ने भारतीय ज्ञान प्रणाली को व्यापक स्वरूप दिया और आध्यात्मिकता एवं विज्ञान के बीच संतुलन स्थापित किया। 

ब्रह्म सूत्र के प्रमुख दर्शन 

अद्वैत वेदांत (शंकराचार्य का मत) 

अद्वैत वेदांत, जो आचार्य शंकर द्वारा प्रतिपादित किया गया, ब्रह्म सूत्र की एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्याख्या है। इस मत के अनुसार: 

ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, और जगत माया (भ्रम) है। 

आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं; इन दोनों में कोई भेद नहीं है। 

मोक्ष तब प्राप्त होता है जब मनुष्य इस अद्वैत सत्य को समझ लेता है और माया के भ्रम से मुक्त हो जाता है। 

विशिष्टाद्वैत वेदांत (रामानुजाचार्य का मत)

आचार्य रामानुज द्वारा प्रतिपादित विशिष्टाद्वैत वेदांत यह मानता है कि: 

– ब्रह्म सर्वोच्च सत्ता है, लेकिन जीवात्मा और जगत उसी ब्रह्म का विशिष्ट रूप हैं। 

– आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, परंतु आत्मा ब्रह्म का एक विशिष्ट अंश है। 

– भक्ति (ईश्वर की उपासना) से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। 

द्वैत वेदांत (मध्वाचार्य का मत)

मध्वाचार्य के द्वैत वेदांत में ब्रह्म और आत्मा को पूर्णतः अलग माना जाता है। इस मत के अनुसार: 

– परमात्मा (भगवान विष्णु) और जीवात्मा अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं। 

– जीवात्मा की मुक्ति केवल ईश्वर की कृपा से संभव है। 

– भक्ति और प्रभु की सेवा मोक्ष प्राप्ति का मुख्य साधन हैं। 

ब्रह्म सूत्र की संरचना 

ब्रह्म सूत्र में कुल पाँच सौ पचपन  सूत्र हैं, जो चार अध्यायों में विभाजित हैं: 

समन्वय अध्याय – ब्रह्म का स्वरूप और वेदांत ग्रंथों का मूल सिद्धांत। 

अविरोध अध्याय – ब्रह्मज्ञान और वेदों के अन्य विषयों में कोई विरोध नहीं। 

साधन अध्याय – मोक्ष प्राप्त करने के उपाय, जैसे ज्ञान, भक्ति और तपस्या। 

फल अध्याय – मोक्ष प्राप्ति के बाद आत्मा की अवस्था। 

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